भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम मेरे साथ / गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल'
Kavita Kosh से
तुम मेरे साथ
एक दो क़दम चलने का
अभिनय मत करो
एक ही बिंदू पर खड़े-खड़े
दूरियां तय मत करो..!
तुमको जानता हूं
फ़ायदा उठाओगे -
मेरे दुखड़े गाने का
मुझे मालूम है/तुम मेरे आंसू पौंछने को भी
भुनाते हो
तुम सदन में मेरे
दर्द की दास्तां सुनाते हो !
तुम जो
हमारी भूख को भी भुनाते हो !
तुम जो कर रहे हो
उसे “अकिंचन-सेवा” का नाम न दो..!!
जो भी तुम करते हो
उसे दीवारों पर मत लिखो ..!!
तुम जो करते हो उसमें
तुम्हारा बहुत कुछ सन्निहित है
मित्र
ये सिर्फ़ तुम जानते हो..?
न ये तो सर्व विदित है…!