भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम यहीं कहीं हो / सुनीता शानू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यादों की स्याही से लिखा था
जो खत तुमने
हर शब्द चूमा है
अधरों ने
तुम्हें याद कर
कि जैसे उभर आई हो
तस्वीर तुम्हारी

इन शब्दों में
तुम दूर हो मुझसे
यह कह भी दिया
किसने तुम्हें
सांसों का कहना है
कि ये
तुमसे होकर
समा जाती हैं
मुझमें

जब भी उठती है सीने में
एक लहर सी
तुम आते हो
और हाथ अपना रख
कर देते हो
चुप उसे
हर सिहरन का होना भी
अहसास दिलाता है
कि तुम यहीं कही हो
पास मेरे...