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तुम लहर सा चूमते-फिरते किनारों का / प्रमोद तिवारी

तुम लहर सा
चूमते-फिरते किनारों को
और तट पर
डूबते जलयान जैसे हम

मान्यताओं ने बजाई
खूब शहनाई
देखकर मौसम हवा
सिंदूर ले आई
मांग भरते हाथ कांपे
आँख भर आई
और फिर खुद को
लगे मेहमान जैसे

फूल शायद मौन मेरा
सह न पाएंगे
ये अधर अब इस जनम
कुछ कह न पाएंगे
गंध ओढ़े लाज जिसमें
वास करती थी
उस लुटे रनिवास के
दरबान जैसे हम

याद को
बांधे किसी के
प्यार को बांधे
रूप को बांधे कभी
शृंगार को बांधे
चल रहे हैं देखिए
चलते रहें कब तक
आँसुओं के अनवरत
अभियान जैसे हम