Last modified on 18 सितम्बर 2011, at 00:03

तुम शरमा क्यों गई / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

एक रात
छत के ऊपर बैठे हुए
हमारी ख़ामोशी
आपस में कह-सुन रही थी
चाँद लबालब था
आहिस्ता क़दमों से बढ़ता हुआ
चुपके से छलक गया
चांदनी की एक बूँद
तुम्हारे गालों पर आ गिरी

तुम
और ज्यादा खुबसूरत लगने लगी
मेरी आँखों ने तुम्हें छू लिया यूं ही
तुम शरमा क्यों गई?