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तुम शरमा क्यों गई / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
एक रात
छत के ऊपर बैठे हुए
हमारी ख़ामोशी
आपस में कह-सुन रही थी
चाँद लबालब था
आहिस्ता क़दमों से बढ़ता हुआ
चुपके से छलक गया
चांदनी की एक बूँद
तुम्हारे गालों पर आ गिरी
तुम
और ज्यादा खुबसूरत लगने लगी
मेरी आँखों ने तुम्हें छू लिया यूं ही
तुम शरमा क्यों गई?