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तुम समझ पाओगे मुझे / विश्वासी एक्का
Kavita Kosh से
मन का सूना आँगन
मुरझाए पत्तों का राग
हरसिंगार की उदासी
हवाओं का रूखापन
न बरसने का मन बनाए
बादलों का हठ ।
धूल भरी तेज़ हवाओं का हुल्लड़
चिन्दी-चिन्दी बिखरता स्त्री का मन
पूरी रात जागते हुए
चाँद का सफ़र
शोर मचाते हुए
झींगुरों की चांय-चांय
या रात का
दिन से चिरन्तन वियोग
तुम समझ पाओगे ?
यदि मैं लिखूँ
शब्दहीन कविता
या कोई अबूझ कहानी ।