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तुम समुद्र-शिला / कविता भट्ट

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22
जागी लगन,
सागर से मिलन
नदी मगन।
23
जड़ जगत
नदिया-सा जीवन
सदा चेतन।
24
है गतिशील
समाधिस्थ चलती
कोटिशः मील।
25
नदी महान-
सिखाये संघर्ष में
आनंदगान।
26
विनम्र साध्वी-
नभ से धरा तक
तू ऋषिकन्या!
27
मुक्त तरंगा-
जग तारणहार
पावन गंगा।
28
ओ जगदम्बे!
भव बाधा बहा दो
जाह्नवी गंगे।
29
गुंजायमान
सधे सुर नदी के
संगीत जान ।
30
मैं हूँ नदिया
तुम समुद्रशिला
फिर भी पाना ।
31
चरण चूमे
प्यासी धरा नदी के
मगन घूमे ।
32
द्रवित होओ
कृतघ्न मत ठनो
नदी- से बनो ।
33
गंगा महान
अमित प्रताप है
करें सम्मान।
34
झरती रहे
आशीष धरा पर
धरती रहे।
35
अमृतदान
प्रत्येक बूँद है री
गंगा महान।
36
मोक्षदायिनी
पुनः- पुनः जन्म लूँ
तेरी ही धरा