अंधियारा हो घना
सखी तब
तुम सुहाग के फूल खिलाना
तारे देंगे साखी सुख की
महकेगी जब देह तुम्हारी
नहलाएगी हमें छोह से
ऊपर जो है नदी कुंआरी
वही नदीजल
नेहदेवता के अंगों पर
सखीÊ चढ़ाना
सांसें अपनी मंत्र जपेंगी
पंखुरियों की हठी छुवन के
भीतर जो आकाश हमारे
हो जाएंगे सोनबरन के
इन्द्रधनुष जो
आंखों में है
उससे ऋतु के घाट सजाना
हम दोनों के देहक्षितिज पर
हुईं फागुनी जो घटनाएं
उनसे ही तो उपजी हैं
हमने जो लिक्खीं
वे कविताएं
हम जब बीतें
कलÊ सजनी
तब बच्चों को तुम वही सुनाना