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तुम से शुरू, तुम से ख़त्म / वत्सला पाण्डेय

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तुम से शुरू
तुम से ख़त्म
कितनी सिमटी है
दुनिया मेरी
और तुम,
व्यस्त हो जाने कहाँ
मशीनों की तरह
एक छत, एक कमरा
एक तरफ मैं
और मेरे छोटे से ख़्वाब
दुसरे कोने में तुम
और तुम्हारी फाइलें
एक तरफ उम्मीदों से
झिलमिलाती आँखे
एक तरफ शून्य को
निहारती, पूरा करती
ओफ्फिस का अंकगणित
ज़रा देखो पलट कर
महसूस करो
उन अनकहे अहसासों को
जो जीवन की
संजीवनी है
जाने क्यों मेरे अहसास
टकराते ही नहीं
तुम्हारे अहसासों से
जाने क्यों...