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तुम हमारी जान ले लो / राजेन्द्र गौतम
Kavita Kosh से
तुम हमारी जान ले लो
यह बहुत सस्ती मिलेगी ।
बेदख़ल हम खेत से हैं
बेदख़ल खलिहान से हैं
कब भला दिखते तुम्हें हम
इक अदद इंसान से हैं
पाँव छाती पर धरे हो
या कि गर्दन पर रखे हो
देह अब सामान, ले लो
यह बहुत सस्ती मिलेगी ।
पीपलों को बरगदों को काट देना
उधर स्वीमिंग-पूल होगा
बस्तियाँ जब तक न उजड़ेंगी यहाँ से
मौसम कहाँ अनु’कूल’ होगा
झील-परबत-जँगलों पर
सेज बिछनी है तुम्हारी
गाँव की पहचान ले लो
यह बहुत सस्ती मिलेगी ।
तुम ख़ुदा, हाक़िम तुम्हीं हो
स्वर्ग का बसना यहाँ पर लाजिमी अब
छू रहे आकाश तुम हो
राह रोके कौन अदना आदमी अब
चान्द-तारों से सजी
बारात निकली जा रही है
रात की तुम शान ले लो
यह बहुत सस्ती मिलेगी ।