मेरे महबूब!
अज़ल से अबद तक
ऐसा ही होता आया है
और
ऐसा ही होता रहेगा
मुहब्बत के नसीब में
हिज्र के दिन हैं
और
हिज्र की ही रातें हैं
जान!
मैं नहीं जानती
मेरी क़िस्मत में
तुम्हारा साथ लिखा
भी है या नहीं
मैं सिर्फ़ ये जानती हूँ
कि मैं जहाँ भी रहूँ
जिस हाल में भी रहूँ
ये दुनिया हो
या वह दुनिया
तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगे।