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तुम हरहों दीनन के मांही / संत जूड़ीराम
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तुम हरहों दीनन के मांही।
निज कर्मन की परी परेना तुमहिं होश कछु नाँहीं।
अपने भावन जगत सब रोबे समझ देख दुख नाँहीं।
बिन सत्संग विवेक न आवे भूलो फिरत फिराहीं।
चड़ चेतन गृंथ अरुझानी, जुग-जुग सुरझत नाँहीं।
जब लगि नाथ कृपा नहिं कीनी तब लग नाच नचाहीं।
कपट कुसंग अंग छल छद्रिम भक्तन उरमन माहीं।
जूड़ीराम विश्वास न जिनके सुक सपने कछु नाँहीं।