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तुम हवाओं के आगे / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
तुम हवाओं के आगे अड़े मत रहो,
तुम सड़क के किनारे खड़े मत रहो।
तेरा विश्वास लूटा बड़ी बात क्या,
चलती सरकार यूँ ही नयी बात क्या,
गर भरोसे के दामन में काँटे बहुत
चाँद उगता ही होगा गयी रात क्या?
किये पत्थर जिगर तुम कड़े मत रहो
कोसकर के अंधेरे पड़े मत रहो।
तुम जलाओ दीये व मशालें बनो
बिना अस्तित्व खतरे में डाले बनो,
तेरा पुरुषार्थ ज़िंदा कमी कुछ नहीं
तुम बड़ों की तरह ही मिसालें बनो।
आलसी की तरह तुम पड़े मत रहो
खुद को पहचानो भू में गड़े मत रहो।
कुछ न कुछ माना जीवन में हासिल हुआ
यातना को भुला प्रेम काबिल हुआ,
झेलता जो रहा है प्रतिकार को
एक तुम ही नहीं हरेक में शामिल हुआ।
सर से ऊपर जो पानी डरे मत रहो
अपनी औकात से तुम बड़े मत रहो।