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तुम ही आते हो अक्सर / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

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तुम ही आते हो अक्सर।
सूनी रातों के सन्नाटो में,
अनायास ही बातों-बातों में,
पल पल पिघलाती यादों में।
तुम ही आते हो अक्सर।

आँखे जब भरने को आती है,
यादें जब सांसो से सौदा कर जाती हैं।
जब होंठो पर कुछ बातें आते-आते रुक जाती है।
जब बांह पसारे बेचैनी सीने से टकराती है।
जब सिमट कर आँचल में कोई शर्माता है।
जब बिछोही मन रह-रह कर घबराता है।
आंसू बन कर पलकों पर,
तुम ही आते हो अक्सर।

ह्रदय नाद को स्वर मिल जाते।
आँसू गालो पर घिर आते।
विरह व्यथा का सार लिए तब,
तुम ही आते हो अक्सर।
ह्रदय के हर स्पन्दन में,
तुम ही आते हो अक्सर।