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तुम ही क्यों ? / संजय अलंग
Kavita Kosh से
कहते हैं मरने में समय नहीं लगता
तब भी तिल-तिल कर मारा जाता है
तब मृत्यु गर्व हो या शर्म
अब यह भी कहा जा रहा है
नहीं मरना, गरीब की तरह
न ही कला के लिए
हड्डियों के बाकी रहते
उसमें भी कतर-ब्योंत तो होगी ही
आत्मा भी वितरित की जाएगी
उसमें तुम्हारी तस्वीर नहीं होगी
न ही तुम्हारी मिट्टी
हताश नहीं हो
साथ तब भी है
राजा का, युद्ध का, गबन का, रोग का
तब भी प्रश्न उठ रहे है
तुम ही क्यों?