तुम ही तुम हो लाखों में / कमलेश द्विवेदी
चारों तरफ़ तुम्हीं तुम दिखते तुम ही तुम हो आँखों में।
भीड़ भले है लाखों की पर तुम ही तुम हो लाखों में।
साँसों में अब बसे तुम्हीं तुम
तुम ही तुम हो आसों में।
ख़ुद पर फिर विश्वास जगा है
तुम जागे विश्वासों में।
फिर उड़ने का मन करता है तुम हो मन की पाँखों में।
भीड़ भले है लाखों की पर तुम ही तुम हो लाखों में।
फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन
भौंरे उनसे आन मिले।
लगता है जैसे दोनों को
जीने के सामान मिले।
तुम फूलों में ख़ुशबू जैसे तुम्हीं खिले हो शाखों मे।
भीड़ भले है लाखों की पर तुम ही तुम हो लाखों में।
जबसे तुमको देखा मैंने
दिल की हर धड़कन धड़की।
आग प्यार की शान्त पड़ी थी
जोर-शोर से फिर भड़की।
अब तक शायद दबी हुई थी इक चिंगारी राखों में।
भीड़ भले है लाखों की पर तुम ही तुम हो लाखों में।