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तुम ही तो हो वो / राकेश प्रियदर्शी


जो सदियों से हमारे जख़्मों पर
रगड़ता रहा मिर्च और लगाता रहा
ठठाकर अट्टहास, वह कौन है?
तुम ही तो हो वो

हमारे सूखे हुए आंसुओं के निशान
देखकर भी जो चुभोता रहा पीठ में
खंजर, हमारी माँ-बेटियों की आबरू से
करता रहा खिलवाड़, वह कौन है?
तुम ही तो हो वो

जो आज भी हमारे बढ़ते क़दम पर
लगा रहा है साज़िशों के लगाम, बिछा रहा
है हमारे रास्ते में कांटे ही कांटे, वह कौन है?
तुम ही तो हो वो

तुम ही तो हो वो जो करते हो आरक्षण का
विरोध, दलित साहित्य का विरोध,
तुम ही तो हो वो जो धर्म के नाम पर
मनगढ़न्त मान्यताओं को दे रहे प्रश्रय
संस्कृति का राग अलापकर
और शिक्षा-दीप के बावजूद फैला रहे हो
अंधविश्वास का रोग

तुम ही तो हो वो
जिससे छीनना है हमें अपना हक