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तुम ही हुए न घर के / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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हुए
सब हुए
तुम ही हुए न घर के।
कहाँ-कहाँ पर
माथ न टेका-
हाथ न जोड़े,
किस मन्दिर में फूल न छोड़े-
हैं-
अँजुरी भर-भर के।
अगवारे का
कुआँ ब्याहने
कई बार उतरे हैं डोले,
खुलते खिड़की, चिहुँकी पिड़की-
कागा बोले-
अंग-अंग फरके।