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तुम हो भी और नहीं भी / मनीषा पांडेय

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तुम हो भी और नहीं भी
तुम मैं हो
और मैं तुम
एकाकार ऐसे
जैसे
कुम्‍हार की मिट्टी में ढला हुआ घड़ा
जैसे फूलों में घुले रंग
जैसे शहद में मिठास
जैसे पसीने में नमक
जैसे आंखों में रहते हैं आंसू
और दिल में उदासी
जैसे आत्‍मा के भीतर एक सतानत दिया जलता है
राह दिखाता
तुम वही दिया हो
अंधेरे में टिमटिमाते हुए
दिखा रहे हो आत्‍मा को
रास्‍ता।