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तुम हो मेरे पास निरंतर फिर यह अंतर क्या है?/ गुलाब खंडेलवाल

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तुम हो मेरे पास निरंतर फिर यह अंतर क्या है?
जो न मुझे मिलने देता तुमसे जीवन-भर क्या है?

यद्यपि मन में मुस्काते हो
सम्मुख कभी नहीं आते हो
मुझे निरंतर भटकाते हो
जिस सुषमा के मोहजाल में बाहर-बाहर क्या है?
 
कभी रात के शेष प्रहर में
लगता है आये तुम घर में
कहो न चाहे कुछ उत्तर में
किन्तु स्पर्श-सा लगता जो अंगों में थर-थर क्या है?
 
एक लक्ष्य है, एक किनारा
कब होता पर मिलन हमारा!
मैं बहता जल हूँ तुम धारा
प्राणों का  सम्बन्ध हमारा कुछ तो है पर क्या है?

तुम हो मेरे पास निरंतर फिर यह अंतर क्या है?
जो न मुझे मिलने देता तुमसे जीवन-भर क्या है?