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तुम हो ही नहीं / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
बात उन लहरों की थी
जो मेरे अंदर उमड़ रहीं थी
पास आ के सुन पाते तो
तुम्हें अहसास हो जाता
बात उन लम्हों की थी जो
तुम्हारे साथ बिताए पलों का समावेश थे
मेरी आँखों में झाँकते तो
तुम्हें दिखाई दे जाते
पर तुम होते तो ना
तुम हो ही नहीं
फिर ये लहरें कैसी?
फिर ये लम्हें कैसे?