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तुम / महेन्द्र भटनागर

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जब - जब

मुसकुराती हो
बहुत भाती हो !
तुम
हर बात पर क्यों
मुसकुराती हो !

जब - जब
सामने जा स्वच्छ दर्पण के
सुमुखि !
शृंगार करती हो,
धनुषाकार भौंहों - मध्य
केशों से अनावृत भाल पर
नव चाँद की
बिन्दी लगाती हो,
स्वयं में भूल
फूली ना समाती हो
बहुत भाती हो !

नगर से दूर जा कर
फिर
नदी की धार में
मोहक किसी की याद में
दीपक बहाती हो
बहुत भाती हो !
मुग्धा लाजवंती तुम
बहुत भाती हो !
जब बार - बार
मधुर स्वरों से
मर्म-भेदी
चिर-सनातन प्यार का
मधु - गीत गाती हो
पूजा - गीत गाती हो
बहुत भाती हो !