(एक) 
मुस्कुराते हो 
तो लजाती हैं उदास आंखें तुम्हारी
 
मैं छूती हूँ तुम्हें 
कैसी बुनावट है
एकदम सूती 
खुरदुरा 
शुद्ध 
कपास! 
जलेगा एक-एक तंतु आखिरी दम 
मुझ तक पहुँचने देने से पहले आंच 
मैं ठंडी पड़ी राख हूँ पहले ही 
मेरे पगले! 
(दो)
मैंने बेसब्री से रात की प्रतीक्षा की
अँधेरा होने पर लेट गयी
चादर बिछाकर आसमान तले
सांस खींचकर बंद कर लीं आँखें
एक स्कूबा डाइव के लिए 
जैसे समन्दर के नीचे की दुनिया हो
ऐसे कितना साफ़ दिखाई देता था 
मोतियों भरा थाल
 चाँद 
 जुगनू
 और 
 तुम! 
(तीन) 
तुम हार रहे थे 
मुस्कुराई थी मैं 
खेलने दिया था शिद्दत से
मेरा प्रिय खेल तुम्हे
एक रात बदल रही थी 
भोर में धीरे-धीरे 
सौंप दिए मैंने 
टिमटिमाते तारे 
और पा लिया 
एक समूचा आकाश! 
(चार)
पसीने में भीगते 
निपट प्यासा होना-
-ऐसे चाहना तुम्हे! 
(पाँच)
जहाँ दीखती है खूब रोशनी 
मुड़ जाना वहाँ से—
तुमने कहा रास्ता बताते 
और मुझे सुनाई दिया
—रुकना मेरे लिए वहाँ 
जहाँ गहन हो अन्धकार! 
यह सुनकर कोई आंखों में देखे बिना 
कैसे रह सकता होगा
मैं भी नहीं रही
और देखा पहली बार 
तुम्हारी आंखों में सर्द अन्धेरा 
मुझे रुकना था वहीं? 
और करना था इंतज़ार! 
(छह)
मिटा कर सारी स्मृतियों को 
भर दिया गया है अज्ञात! 
अब तुम ही लौटाना किसी दिन 
वे अल्हड़ पल, सौंपना मुझे 
वह समय जब मैं प्रेम में थी 
दिलाना याद मुझे एक-एक बात 
और वह क्षण भी 
जब कहा व्याकुल होकर 
हां मैं प्रेम में हूँ
और तुम नहीं थे
कुछ भी सुनने को वहाँ 
(सात)
अब इस सर्द रात मेरे पास 
बहुत गरम कपड़े हैं 
दिन भर की तायी हुई धूप आंखों में
सूखे मेवे और मोजे और नया स्कार्फ़ जो अभी उपहार में मिला है 
ठंड है कि धंसती जाती है नसों में 
कई सालों से दिसम्बर बीतता नहीं है 
देखो मेरे नीले नाखून और बर्फ होती नाक 
तुमने जाते हुए कहा–ध्यान रखना अपना 
मैं गर्म चाय से जला लेती हूँ तालू और अब स्वाद ही नहीं बचा है कोई 
अकेलापन अंटार्कटिक-सा सफेद है और ठण्डा–तुम्हें लिखते हुए 
मैं सब खिड़कियाँ बंद करके सिमट जाती हूँ।