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तुम 2 / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
गौरैया हो
मेरे ऑंगन की उड़ जाओगी !
आज मधुर कलरव से गूँज रहा घर, बरस रहा दिशि - दिशि प्यार - भरा रस - गागर, डर है जाने कब जा दूर बिछुड़ जाओगी !
जब - तक रहना है साथ रहे हाथों में हाथ, सुख - दुख के साथी बन कर जी लें दिन दो - चार, परस्पर भर - भर प्यार, मेरे जीवन - पथ की पगडंडी हो जाने कब और कहाँ मुड़ जाओगी !