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तुलसी चौरा मुस्कराता / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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बिल्ली को मौसी कहते हैं ,
और गाय को हम माता|
यही हमारे संस्कार हैं,
पशुओं तक से है नाता|
चिड़ियों को देते हैं दाना,
कौओं को रोटी देते|
प्यासों को पानी देने में,
हमको मज़ा बहुत आता|
यहाँ बाग में फूलों फूलों
हर दिन भँवरा मड़राता,
पेड़ लगा है जो आंगन में
वह भी तो गाना गाता|
देने वाले हाथ हमारे,
हमको देना ही आता|
पर जितना भी हम देते हैं,
दुगना वापस आ जाता|
रोज हमारे घर आंगन में,
स्वर्ण सबेरा बिखराता|
रात चाँदनी जब खिलती है,
तुलसी चौरा मुस्कराता|