तुलसी ने भक्ति भाव का सागर बहा दिया / जनार्दन राय
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया,
गिरते हुए समाज को उसने बचा लिया।
यवनों के अत्याचार से जनता तबाह थी,
पग-पग पे ठोकरें उसे खाने को मिलती थी।
पथ-भ्रष्ट हिन्द-वासी को सन्मार्ग दिखाया,
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया।
अज्ञान मोह वश उसे भगवन न मिलते थे,
दिन-रात सदा उनके रो-रो के कटते थे।
तब प्रेम पूर्ण सगुण रूप उनको दिखाया,
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया।
थे देख रूप राम का फूले न समाते,
अर्चनातित उनके थे फूल न पाते।
चुनने को कुसुम ‘मानस’ का वाग लगाया,
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया।
थे वन्दना हित भक्त वृन्द गीत खोजते,
भगवन को रिझाने के लिए पद्म ढूंढ़ते।
तब दे ‘विनय’ का गीत उन्हें धैर्य बंधाया,
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया।
काव्य जगत गीति काव्य को था खोजता,
दर्शनार्थ उनके था बाट जोहता।
‘गीतावली’ की रचना कर उनको दिखाया,
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया।
कामिनी कविता थी शृंगार खोजती,
निज रूप बढ़ाने की साधना थी ढूँढ़ती।
‘कवितावली’ की रचना कर रूप बढ़ाया,
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया।
द्वेष ने मानव को था दानव बना दिया,
अज्ञानता ने उन पै था अधिकार कर लिया।
तब धर्म, कर्म, राजनीति उनको सिखाया,
तुलसी ने भक्ति-भाव का सागर बहा दिया।
-दिघवारा,
24.7.1958 ई.