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तुलसी / बिंदु कुमारी

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तुलसी ऐंगना लहरावै छै,
नभ गीत हर्ष के गावै छै।
बाबूजी के चरण-रज के चंदन
पावी माथोॅ छै कण-कण।
माता गिरिजा हमरोॅ सुन्दर
नित खिस्सा कही सुनावै छेलै।
हरि कथा प्रेम सेॅ सुनथैं,
हमरोॅ मोॅन बहलै छेलै।
छैलै द्रवित वहाँ दू शिला खंड,
बड़की-छोटी दू माय अखंड।
शोभा अनुपम मन मुग्ध रहै सदा
देखी हर्षित होय मन व्यथा।
युग-युग रॉे बन्धन के कारण
भनोॅ पर पड़लोॅ छै पत्थर भारी।
चाँदनी शिखर छै बिहार घाटी मेॅ,
जगलोॅ सुवास छै झारखण्ड मांटी मेॅ।