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तुषार कणिका / ज्ञान प्रकाश सिंह
Kavita Kosh से
नव प्रभात का हुआ आगमन
है उपवन अंचल स्तंभित
पुष्प लताओं के झुरमुट में
छिपकर बैठी
हरित पत्र पर
बूँद ओस की
ज्योतित निर्मल
धवल स्फटिक
चित्ताकर्षक
स्पष्ट शुभ्र
पारदर्शक
सुष्मित सरला
तुषार कणिका।
जैसे कविता
अविदित पुस्तक
अज्ञात पृष्ट
अव्यक्त भाव
गंभीर गहन
नीरवता में
करती मौन
प्रतीक्षा उसकी
जो शब्दित भावों की रचना
नव निनाद से कर दे गुंजित
जड़ चेतन हो जाये झंकृत।