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तूं कद धाप सी / ओम पुरोहित कागद

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परीक्षा तो
राम भी घणी ली
सीता री
पण
बो भी आखर
झुक्यो हो
म्हारै काळजै री कोर
तूं कद धाप सी
कद झुक सी ?
परीक्षा री तो कोई बात नीं
म्हूं आई गई कर सकूं
पण
जका तु
बीच-बीच मांय
छप्पनै
सड़सठै
निब्बियै जेड़ा कलंक
म्हारै बेकळूं मन पर लगावे है
उणा नै
किण भांत भूंलूं ?
याद कर
जद छप्पनै मांय
आप रै बळतै सीने मंाय स्यूं
बाजरी रा सीटा काढ‘र
थां सामी करया
अर तूं बां मांय
बाजरी रो एक आध
दाणो घाजण री जाग्यां
बाळ सुका‘र
नाड़ नखा दी।
बता !
आभी कोई
भूलण तोग बात है ?
तूं बता
म्हा मांय
उण टैम के बीती हुवैला
जद म्हनै
मा समझणियां डेडर
टर्रा-टर्रा‘र सूकग्या
अर
काछवा री
सूक-सूक‘र
टोपस्या बणगाी।
पण
थारी हेमाणी आख्यां स्यूं
संभव सै
आसूड़ां रा
दो टोपा तक नी टपक्या ।
आगै स्यूं पड़ती
पाणी री एक छांट नेै
देख‘र जद
गूंगलो उण जाग्यां पूग्यो
पाणी री बा छंाट
म्हारै बळतै डील पर
छमकै दांई बळगी
अर उण गूंगलै
पाणी री उण छांट नै
सोधण
म्हारी छाती मांय
बघारो कर नाख्यो
आखर बा छांट
उण नै
नीं लाधी।
पण
मनै तो
आज तक
बो खुद निरभागी भी
नीं लाध्यो ।
बता !
उण गूंगलै नै
म्हूं किण भांत भूलूं  ?
अब
बस कर
परीक्षावां रा बाण
आप रै तरकस मांय घाल‘र
टुरज्या
पाछौ आवै तो
पाणी री
एकाघ छांट लेय‘र
सीता धरती नै
थावस बंधावण आई
झूठी कड़कड़ी खा‘र
आंवतो हुवै तो
मत ना आई।