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तूं कें गईं गावेलऽ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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तूं केंगईं गावेलऽ
कईसन मधुर गीत गावेलऽ
जे हम अवाक होके, मुग्ध होके
बस सुनते रहिले
खाली सुनते रहिले।
तहरा गीत के अँजोर
भुवन भर में सगरे समाइल बा।
तहरा गीत के गूँज
गगन भर में सगरे छितराइल बा।
तहरा स्वर के गंगा
पाखान खंडन के छेद के
व्याकुल वेग से बह रहल बा।
मन करेला जे हमहूँ
अइसने सुर से गइतीं
अइसने सुर सुनइतीं।
बाकिर हमरा कंठ के सुर
तहरा सुर के पकड़ ना पावे।
का कहे के चाहिले, का कहा जाला
का गावे के चाहिले, का गवा जाला
हार मानके हमार मन-प्रण
रोये काने लागेला।
हमरा चारू ओर
अपना अलौकिक स्वर के जाल बिछा के
कइसन फंदा में फँसा देले बाड़ऽ।