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तूं नहिये अइलऽ / शिव प्रसाद लोहानी

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जब तूं अइलऽ हल
तो भुरकिया के खोचवा में नर-मादा मैना
खूब किलोल करते हलो
फेन अंडा देलको
तूं चल गेल तो
अंडा फूट के बच्चा निकसलो
तब ऊ डेगा-डेगी दे के
फुदक-फुदक उड़े लगलों
पखेरू भी हो गेलो
फेन भी तूं नहिये अइलऽ
ऊ घड़ी छीनी पर
हरिहर-हरिहर चिकन-चिकन
खूब सोहावन भुआ फरलों
जब सम्भे भुआ पूरा भूअर हो गेलो
छूए में भूअर धूरा
हाथ मे लटपटाय लगलों
फेन भी तूं नहिये अइलऽ
खेत मे सनई के फूल खूब फूलइलो
पीयर-पीयर झब्बर-झब्बर फूल
ओकरा पर रंग-रंग चितकबरा
तितलियन जी भर नचालको
अब सनई के खाली डाढ़ खड़ा हो
फेन भी तूं नहिये अइलऽ
नीमवा के पेडवा पर
परोर के लत्ती खुब्बे फइललों
लगलों कि पेड़वा
परोर के पत्ता के साड़ी पेहनलेलको हल
पीयर पीयर फूल
आउ हरा कोहड़ियन के बूटा भरल साड़ी
फूलवन से हवा भी खूब अठखेली कइलको
फेन फुलवा मुरझा गेलो
धरती के गोदी में समा गेलो
फेन भी तूं नहिये अइलऽ