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तूतनख़ामेन के लिए-20 / सुधीर सक्सेना
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कभी नहीं उतरा
नदी में
नौकाओं का यह काफ़िला
चप्पू नहीं चले
नील में
इन नौकाओं के बाएँ-दाएँ
पाल नहीं बांधे
मल्लाहों ने एक बार भी
इन नौकाओं पर
देह नहीं भीगी
इनकी एक बार भी
जल के छींटे नहीं पड़े
इन पर एक भी बार
सिर्फ़, तुम्हारे वास्ते बनी ये नौकाएँ
तूतनखामेन !
इन्तज़ार करती रहीं
उस जलयात्रा का,
जो कभी हुई नहीं,
सोचो तो तूतनखामेन !
तुम न होते तो
न जाने
कितने मुसाफ़िरों को
पार लगातीं
सुघड़ सजीली ये नौकाएँ ।