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तूतनख़ामेन के लिए-22 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
ख़ुशनसीब है तूतन
अगर एक भी रात
उसे चूमा चांदनी ने
और उसके महल के प्रांगण में
कुमकुमे बिखेर दिए चांद ने
ख़ुशनसीब है तूतन
अगर महल की प्राचीर पर अलस्सुबह
उतर आए सातों घोड़े
ख़ुशनसीब है तूतन
अगर बुर्ज पर एक भी बार
तूतन की नज़रों के सामने
चमकी चमकीली कटार
अंधकार में
ख़ुशनसीब है तूतन
अगर नील से उठी हवा ने
बिखेर दिया उसका अंगराग
बहुत ख़ुशनसीब है तूतन
अगर कभी खुले आसमान तले किसी गाछ की तरह
भीगी तूतन की नंगी देह
बहुत-बहुत ख़ुशनसीब है तूतन
अगर घुटने के बल गिरा चट्टान पर
दौड़ते घोड़े से तूतन
और फिर ऎड़ लगा दी
घोड़े पर सवार हो तूतन ने
अगर इस पर भी
चैन नहीं है तूतन को
तो बहुत-बहुत ज़्यादा बदनसीब है
सच की ओर पीठ किए
तूतन ।