भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तूतनख़ामेन के लिए-2 / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीते जी सपना देखा

तूतनखामेन ने

सुनहरे जीवन का

मरने के बाद चला गया

मक़बरे में

अपने समस्त वैभव के साथ

राजमुद्रांकित द्वारों के

गोपन-कक्ष में


सोता रहा

सोता रहा

तूतनखामेन

शताब्दियों तक

ज़िन्दगी के इन्तज़ार में

और मौत सिरहाने खड़ी

थपकियाँ देती रही

तूतनखामेन के ललाट पर ।