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तूतनख़ामेन के लिए-4 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
सदियों पहले
ढेर सारी माया
और एक अदद झूठ के साथ
सोया था मक़बरे में
तूतनखामेन
सदियों सोया रहा
निविड़ अंधकार में
धूल में मिल गए राजवंश
वक़्त के घोड़ों ने रौंद डाले सिंहासन
काल के नखों ने चीथ डाला वैभव
पर नहीं जागा
सोता रहा निविड़ अंधकार में
एक करवट तक नहीं बदली
तूतनखामेन ने
शताब्दियाँ आईं,
चली गईं
निश्चल देह के साथ
पलता रहा एक अदद झूठ
सुनो तूतनखामेन !
सुन सकते हो तो सुनो--
अन्तिम नींद के बाद
कभी जागा नहीं करते आदमी