तूफ़ानी जीवन-सागर में साथ-साथ तैरें प्रिय, हम-तुम!
देखो मुक्त प्रवाह, कि इसमें
भँवरों की कैसी क्रीड़ा है!
रासमयी लहरों की बंकिम
भौंहों में कैसी व्रीड़ा है!
तुम पट पर क्यों मौन खड़ी हो, प्राणप्रिये, होकर यों गुम-सुम!
है ही क्या संसार अरे, यहाँ
जबकि गुँथी हो तुम बाँहों में,
चरणों का संगीत जगाने-
सौ चट्टान खड़ीं, राहों में!
दिखलायेगा पंथ तुम्हारे चन्द्र-भाल का शोभित कुंकुम!
जग है यह भादों की रजनी,
प्रिय, तेरे केशों-सी सुन्दर!
पथ के कुश-कंटक तो हैं ये-
मृदु रोमांच हमारे तन पर!
तुम हो मेरी साँस और मैं उससे फूटा हुआ तरन्नुम!
काल-रेत पर ऊषा, सन्ध्या-से
हम मृदु पद-चिन्ह छोड़ते!
बढ़ते जायेंगे चिर तुम में
मन के कोमल तार जोड़ते!
शेष न कोई चाह, साथ हो जब तुम-हे मेरी कल्पद्रुम!
तूफानी जीवन-सागर में
साथ-साथ तैरें प्रिय, हम-तुम!