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तूफ़ानों से बचने का अब समय नहीं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
तूफ़ानों से बचने का अब समय नहीं
ख़तरे हैं पर डरने का अब समय नहीं
भलमनसाहत की भी कोई हद होती
उसके आगे झुकने का अब समय नहीं
ऐसे तो फिर कायर ही कहलाएंगे
यूं चुप बैठे रहने का अब समय नहीं
दुश्मन ने दरवाज़े पर दस्तक दे दी
घर के भीतर छुपने का अब समय नहीं
आगे कुआं है पीछे कहीं न खाईं हो
इस दुविधा में पड़ने का अब समय नहीं
आंसू को बनकर अंगार धधकने दो
भीतर-भीतर कुढ़ने का अब समय नहीं
महफ़िल में दीवाने आस लगाये हैं
सजने और संवरने का अब समय नहीं