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तूफ़ान कोई नज़र में न दरिया उबाल पर / हुसैन माजिद
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तूफ़ान कोई नज़र में न दरिया उबाल पर
वो कौन थे जो बह गए परबत की ढाल पर
करने चली थी अक़्ल जुनूँ से मुबाहसे
पत्थर के बुत में डल गई पहले सवाल पर
मेरा ख़याल है की उसे भी नहीं सिबात
जान दे रहा है सारा जहाँ जिस जमाल पर
ले चल कहीं भी आरज़ू लेकिन ज़बान दे
हरगिज़ न ख़ून रोएगी अपने मआल पर
ऐसे मकान से तो यहाँ बे-मकाँ भले
है इंहिसार जिस का महज एहतिमाल पर
‘माजिद’ ख़ुदा के वास्ते कुछ देर के लिए
रो लेने दे अकेला मुझे अपने हाल पर