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तूफानों से टकरा जायें ऐसे सागर देखे हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तूफानों से टकरा जायें ऐसे सागर देखे हैं।
सबको जो दे रहे आसरा ऐसे भी घर देखे हैं॥
लूट दूसरों का धन घर भरने वालों की दुनियाँ में
औरों हित सर्वस्व लुटाने वाले शंकर देखे हैं॥
देते छाया हमें हमेशा शुद्ध हवा मीठे फल भी
ऐसे श्रेष्ठ तरुवरों को भी खाते पत्थर देखे हैं॥
पिया हलाहल जिसने जगहित माना वह परमेश्वर था
गुमनामी का जीवन जीते क्रांतिवीर वर देखे हैं॥
घर की बहू बेटियों पर जो सौ-सौ पहरे लगा रहे
लुटते उनके हाथों हमने औरों के घर देखे हैं॥
गूंगी बहरी रहतीं पर सदियों की आँख खुली रहती
इनने अपनों के ख़िलाफ़ भी लड़ते लश्कर देखे हैं॥
हर मौसम में रेगिस्तानों वन पर्वत में जो खिलते
उस जिजीविषा से जो हारे ऐसे पतझर देखे हैं॥