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तूफान मचलने वाले है! / राधेश्याम ‘प्रवासी’
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सागर का कम्पन हर क्षण कहता है,
इन लहरों पर तूफान मचलने वाले हैं!
आँधी छाने वाली है जड़-जंगम पर,
उठने वाले हैं भँवर शान्त संगम पर,
यह प्रलय मेघ जो नभ पर घिरते जाते है,
कुसुमित जग का उद्यान भुलसने वाले हैं!
होने वाली साइंस की आज समीक्षा है,
प्राणों की पहली कटुतम धैर्य परीक्षा है,
नाविक सँभलो पतवार पकड़ लो दृढ़ता से,
संघर्षो के संगीत उमड़ने वाले है!
गिरने वाली है चिनगारी बन विप्लव की,
अणु उद्जन एटम की विडम्बना मानव की,
इन बर्फीली चट्टानों के भी अन्तर से,
धधकते हुये अंगार निकलने वाले हैं!