तूम्बा गेला फूटी, देवा गेला उठी / पूनम वासम
पूजा घर मे रखे ताम्बे और काँसे के पात्र से
कहीं ज़्यादा, यूँ कहें कि
रसोईघर के बर्तनों से भी ज़्यादा प्रिय है
हमारे लिए तूम्बा
पेज, ताड़ी, महुआ और दारू
यहाँ तक कि पीने का पानी रखने के सबसे सुगम व सुरक्षित पात्र के रूप में चिन्हांकित है तूम्बा !
तूम्बे का होना हमारी धरती पर जीवन का सँकेत है
जब हवा नहीं थी, मिट्टी भी नहीं थी
तब पानी पर तैरते एकमात्र तूम्बे को
भीमादेव ने खींच कर थाम लिया था
अपनी हथेलियों पर ।
नागर चलाकर पृथ्वी की उत्पत्ति का
बीज बोया भीमादेव ने
तब से पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियाँ, घास-फूस
इस धरती पर लहलहा रहे हैं
वैसे ही तूम्बा हम गोण्ड आदिवासियों के जीवन में
हवा और पानी की तरह शामिल है ।
तूम्बा मात्र पात्र नही, हमारी आस्था का केन्द्रबिन्दु भी है
जब तक तूम्बा सही-सलामत
ताड़ी ,सल्फ़ी, छिन्द-रस से लबालब भरा हुआ
हमारे कान्धे पर लटक रहा है
तब तक हमारा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता ।
बचा रहेगा तूम्बा, तो कह सकते हैं
कि बची रहेगी आदि-जातियाँ
गोण्ड-भतरा, मुरिया
और वजूद में रहेगी ज़मीन और जँगल की संस्कृति
खड़ा ही रहेगा अमानवीयता के विरुद्ध बना मोर्चा
तूम्बा किसी अभेद्य दीवार तरह ।
कि तूम्बा का खड़ा रहना प्रतीक है मानवीय सभ्यता का
दुनिया भले ही चाँद-तारों तक पहुँचने के लिए
लाख हाथ-पैर मार ले
पर हमारे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है
तूम्बे को बचाए रखना
हर हाल में, हर परिस्थिति में
क्योंकि तूम्बे का फूटना
अपशकुन है हम सबके लिए !