भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू एक आइनागर है संभल के चल बाबा / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू एक आइनागर है संभल के चल बाबा ।
ये पत्थरों का नगर है संभल के चल बाबा ।।

क़दम-क़दम पे यहाँ वारदात होती है
ये रौशनी का सफ़र है संभल के चल बाबा ।

अन्धेरी रात के तालिब को कोई डर क्यूँ हो
तुझे तलाशे-सहर है संभल के चल बाबा ।

लिखा हुआ है तेरा दाम तेरे माथे पर
तू एक जिंस है ज़र है संभल के चल बाबा ।

ये दौरे-नौ है यहाँ कोई बच नहीं सकता
किसी की तुझपे नज़र है संभल के चल बाबा ।

यहाँ डकैत भी सरगर्म हैं सियासत में
बड़े-बड़ों पे असर है संभल के चल बाबा ।

धुआँ-धुआँ-सी ये बस्ती हुआँ-हुआँ बाज़ार
इसी में सोज़ का घर है संभलके चल बाबा ।।