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तू और तेरा / ऋतु त्यागी
Kavita Kosh से
मख़मली आवाज़ का ज़ादू
ओस में लिपटी हँसी की धमक
स्वाभिमान के कोहरे में लिपटकर
चाँद सी अठखेलियाँ
खुद से ही रूठना
फिर बिख़र जाना
तेरे भीतर के पसारे में
बरसती नेह की बदली
फिर चुपके से संगत करती
कोई ख़ामोश गज़ल
तेरे मन के हाश़िए पर
खिंची रेखा को
लाँघने का हौसला
हो जाएगा तब हासिल
जब तेरी सोच का सूरज
चीरकर गहरी बदली का टुकड़ा
छा जाएगा आसमान पर
जहाँ के हर हिस्से पर
गीत तेरी कलम की
स्याही के होंगे।