तू कभी इस तरह भी मिल मुझ से / गुलशन मधुर
तू कभी इस तरह भी मिल मुझ से
जैसे मिलती है चांदनी नभ से
जैसे मिलती है हवा सौरभ से
जैसे मिलता है कूल लहरों से
जैसे मिलता है गीत अधरों से
हाँ, कभी इस तरह भी मिल मुझ से
जैसे मिलते हैं शब्द सुर लय से
जैसे रंगों की विभा किसलय से
जैसे मिलती है रागिनी सुर से
नदी मिलती है जैसे सागर से
कभी तो इस तरह भी मिल मुझ से
अब तलक ऐसा है तेरा मिलना
जैसे सपने में फूल का खिलना
जैसे पल भर की झलक दर्पण में
जैसे चमकी हो चंचला घन में
कुछ और तरह से भी मिल मुझ से
कभी ऐसे ही मिल जा धोखे से
जैसे मिलती है डाल झोंके से
जैसे मिलती है ताल थिरकन से
जैसे मिलती है सांस धड़कन से
किसी दिन इस तरह भी मिल मुझ से
जैसे मीठे संदेस की पाती
जैसे मिलती है नेह से बाती
जैसे मिलते हैं गीत तानों से-से
जैसे मिलते हैं प्राण प्राणों से
हाँ, कभी आ के यों भी मिल मुझ से
यों तो सपने में मिला करता है
उससे बाहर भी कभी मिल मुझसे