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तू कभी पास न आया साक़ी / रंजना वर्मा
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					तू कभी पास न आया साक़ी 
गो कि हर रोज़ बुलाया साक़ी 
प्यास भड़की खड़े मैखाने में
पर न दो घूँट पिलाया साक़ी 
तोड़  डाले  हैं  गुल  उमीदों  के
ख़ाक में इतना मिलाया साक़ी 
अब  हैं  बेज़ार इस  मुहब्बत से
जिस ने इस तरह रुलाया साक़ी 
बाद जो आये  उन्हें  मय दे दी
पास हम को न बुलाया साक़ी 
महफ़िले इश्क  में  परवाने को
साथ शम्मा के जलाया साक़ी 
तेरा कैसा है ये इंसाफ़ ए शरअ
टूटे दिल को न  मिलाया साक़ी
	
	