तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था / ग़ालिब
तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था
औरों पे है वो ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था
छोड़ा मह-ए-नख़शब<ref>नकली चाँद</ref> की तरह दस्त-ए-क़ज़ा<ref>मौत का हाथ</ref> ने
ख़ुर्शीद<ref>सूरज</ref> हनूज़ उस के बराबर न हुआ था
तौफ़ीक़<ref>शक्ति</ref> बअन्दाज़ा-ए-हिम्मत<ref>साहस के मुताबिक</ref> है अज़ल से
आँखों में है वो क़तरा कि गौहर<ref>मोती</ref> न हुआ था
जब तक की न देखा था क़द-ए-यार का आ़लम
मैं मुअ़़तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर<ref>कयामत को उपदर्वी मानने वाला</ref> न हुआ था
मैं सादा-दिल, आज़ुर्दगी-ए-यार<ref>यार की उदासी</ref> से ख़ुश हूँ
यानी सबक़-ए-शौक़<ref>प्रेम का पाठ</ref> मुकर्रर न हुआ था
दरिया-ए-मआ़सी<ref>पाप का दरिया</ref> तुनुक-आबी<ref>पानी की कमी</ref> से हुआ ख़ुश्क
मेरा सर-ए-दामन<ref>दामन का सिरा</ref> भी अभी तर न हुआ था
जारी थी असद दाग़-ए-जिगर से मेरी तहसील<ref>प्राप्ति</ref>
आतिशकदा<ref>आग का मंदिर</ref> जागीर-ए-समन्दर न हुआ था