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तू नजर अबइत हत / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
जब सब्भे दुनिया के लोग
अप्पन-अप्पन स्वारथ में
फंसल नजर अबइत हतन
तब झिलमिलाइत रोशनी में
हमरा तू नजर अबइत हतऽ
लोर के पोखर में
तूफान से घिरल
जब हम बेबस आर बेसहारा होकऽ
तोरा पुकारइत हती
त दूर कहीं-
असमान में बादल बन घुमइत
तू नजर अबइत हतऽ
दम जब घुटइअऽ
इहां के हवा में
त मलयालम के पहाड़ से
ठंढा बयार बनकऽ
तू नजर अबइत हतऽ