भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू मेरा दास्त है जंजीर न बन / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू मेरा दास्त है जंजीर न बन
दिल को राहत तो दे दिल की पीर न बन

जब घिरुं तमसे मैं, रोशनी ले के आ
तू यकीं है मेरा, तकदीर न बन

वक्त की तरह तू मेरे जख्मों को भर
उसकी मरहम तो बन, विष का तीर न बन

दर्द को कांधा दे खामोशी से तू
मेरा हमदर्द बन, तदबीर न बन

बदगुमानी मेरी प्यार से तू मिटा
बन मेरा आईना, तस्वीर न बन

रिश्ते ज़ज्बात के हक देते नहीं
छोड़ पाऊँ ही न, जागीर न बन।