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तू यहां के तौर-तरीकों से वाकिफ़ नहीं / सांवर दइया
Kavita Kosh से
तू यहां के तौर-तरीक़ों से वाकिफ़ नहीं।
तेरे लिए उनकी यह बज्म मुआफिक नहीं!
खून का नाम सुनते ही पसीना आ गया,
तेरा यहां टिके रहना कुछ मुनासिब नहीं।
अभी से हाथ-पांव फूल रहे, आगे सोच,
यह पहली वारदात है, खुदा हाफ़िज नहीं।
तेरे भीतर अभी जिन्दा है एक आदमी,
तुझको दिखेगी क़दम-क़दम पर दोजख़ यहीं।
सिर्फ दरिंदों की खातिर रखे हैं ये खिताब,
आदमी का देख यहां कोई आशिक़ नहीं!