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तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग / हबीब जालिब

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तू रँग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग
तो फूल है शरार हैं तेरी गली के लोग

तो रौनक़-ए-हयात है तो हुस्न-ए-काएनात
उजड़ा हुआ दयार हैं तेरी गली के लोग

तू पैकर-ए-वफ़ा है मुजस्सम ख़ुलूस है
बदनाम-ए-रोज़गार हैं तेरी गली के लोग

रौशन तिरे जमाल से हैं मेहर-ओ-माह भी
लेकिन नज़र पे बार हैं तेरी गली के लोग

देखो जो ग़ौर से तो ज़मीं से भी पस्त हैं
यूँ आसमाँ-शिकार हैं तेरी गली के लोग

फिर जा रहा हूँ तेरे तबस्सुम को लूट कर
हर-चन्द होशियार हैं तेरी गली के लोग

खो जाएँगे सहर के उजालों में आख़िरश
शम्अ' सर-ए-मज़ार हैं तेरी गली के लोग