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तू हज़ारों ख़्वाहिशों में बँट गई / बी. आर. विप्लवी
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तू हजारों ख़्वाहिशों में बँट गई
ज़िन्दगी क़ीमत ही तेरी घट गई
सुबह की उम्मीद यूँ रोशन रही
इस भरोसे रात काली कट गई
पहले मुझसे तुम कि मैं तुमसे मिला
ये बताओ किसकी इज़्ज़त घट गई
तिश्नगी सहराओं सी बढती गई
जुस्तजू में उम्र सारी कट गई
'विप्लवी' इस हिज्र के क्या वहम थे
हो गया दीदार कड़वाहट गई